Thursday, March 13, 2008

खोज

बहुत दूर से चले आ रहे थे,

अब लगा की लौट जाए

पर जब पीछे मुड़कर देखा तो जाना

की आशियाने के लिए

हम जन्नत छोड़ आए...

बहुत कुछ पाने की तमन्नामे

हमने बहुत कुछ खो दिया

जो सपना पहले आखोंमे झिलमिलाता था

अब तेज़ रौशनी बनकर चुभने लगा

लगा जैसे सपने सच करने के लिए

हमने हकीकत से रिश्ता तोड़ दिया

जन्नत की तरफ़ चल रहे थे

न जाने कैसे जहन्नुम का रास्ता चुन लिया?

बस इतना-सा ख्वाब कहते,

इतना बड़ा कैसे हुआ?

और ये मन भी?...

एक पाने के बाद, दूसरा क्यों चाहने लगा?

आगे की चिंतामे

हमने कल को भुला दिया

सम्पूर्णता की खोज्मे

शून्यता को खो दिया......


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